Gunjan Kamal

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प्यार जो मिला भी और नहीं भी भाग :- १८

                                    भाग :- १८


अठारहवां अध्याय शुरू 👇


इंसान जिसे अपना  सबसे प्रिय मानता हो वह जब किसी भी तरह की  मुसीबत में हो ये जानकर अपना आपा खो देना इंसान की एक ऐसी प्रवृत्ति मानी गई है जिसे उसकी कमजोरी से मापा जा सकता है, ऐसी ही एक  कमजोरी किशन देव के लिए उसकी बेटी मधु है।


किशन देव जब अपनी ड्यूटी से आया, अपनी बेटी को बुखार में तड़पता देख कर उस पर क्या बीती उसका दिल ही  ये जान रहा है, ऐसे में अचानक से अपनी पत्नी को सामने देखकर वह गुस्से से चिल्ला पड़ा। किशन देव जब  मधु से बाते कर रहे था उस कमरे में प्रवेश करने वाला शख्स और कोई नही बल्कि किशन देव की पत्नी और मधु  की माॅं आरती ही थी जो स्कूल से  वापस घर लौटकर अपने कमरे में आई  है।


किशन देव मधु  के पास से उठकर आता है और आरती पर लगभग चिल्लाते हुए कह रहा है 👇


किशन देव :- क्या तुम हमारी बेटी के लिए एक  दिन स्कूल से छुट्टी नहीं ले सकती थी। मैं तो दूर था लेकिन तुम तो इसके पास थी तुम्हें तो मालूम होना चाहिए था  कि हमारी बेटी को बुखार है फिर तुम इसे बुखार में तड़पता हुआ छोड़कर स्कूल क्यों गई थी? तुम्हारा इतना ही स्कूल जाना जरूरी था तो फिर तुम मुझे बता देती मैं किसी और को बोल देता इसकी देखभाल करने के लिए।


आरती अभी - अभी स्कूल से आई ही है उसके कंधे पर  स्कूल वाला  अभी भी उसका बैग लटका ही हुआ था। अचानक से अपने पति के मुख से अपनी बेटी मधु की बुखार वाली बात सुनकर वह  चौंक जाती है क्योंकि आज सुबह जब वह स्कूल जा रही थी तब तो मधु को बुखार नहीं था फिर अचानक से उसे बुखार कैसे हो गया? आज सुबह तो वह काॅलेज  जाने की जिद कर रही थी लेकिन उसने ही उसे कॉलेज जाने से मना किया था और कहा था कि आज भर आराम कर ले उसके बाद कल से कॉलेज चले जाना।


मन ही मन में विचार करते हुए आरती अपनी बेटी मधु के पास जाती है और  उसके सिर को  छूकर देखती है। मधु की ऑंखों में ऑंसू  देख कर वह चौंक जाती है और कहती है 👇


आरती ( मधु की माॅं ) :- क्या हुआ लाडो इस तरह क्यों रो रही हो?  मैं मानती हूॅं कि मैं तुम्हें छोड़कर स्कूल चली गई मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि तुम्हारी तबीयत इतनी बिगड़ जाएगी। तुम बुखार में तड़प रही थी और मुझे इस बात का अंदाजा तक नहीं था। मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा है कि मैंने सुबह तुम्हारे शरीर को छूकर क्योंकि नहीं देखा कि तुम्हें बुखार है या नहीं?  मुझे जाने से पहले तुम्हारा बुखार जांच लेना चाहिए था जो मैंने नही किया। तुम रो मत! इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है गलती तो मेरी है बेटा।


मधु अपना हाथ अपनी माॅं  के हाथ में रखते हुए कहती है 👇


मधु :- माॅं!आपको पापा से डांट पड़ गई इसलिए मैं रो रही हूॅं। मुझे बुरा भी लग रहा है क्योंकि पापा ने बिना सोचे - समझे, बिना आपकी गलती के आपको डांट दिया।


अपनी माॅं से ये सारी बातें कहने के बाद मधु ने अपने दूसरे हाथ के इशारे से अपने पिता किशन देव को अपने पास आने का इशारा किया‌। अपनी बेटी के हाथ का इशारा समझकर तुरंत ही किशन देव मधु के पास पहुंचा। अपने पिता को अपने नजदीक आया देखकर मधु ने उनकी तरफ देखते हुए कहा 👇


मधु :- पापा! जब आप माॅं पर चिल्ला रहे थे मैं चुप इसलिए थी कि मुझसे बोला नहीं जा रहा था ।अभी भी मुझसे बोला नहीं जा रहा है लेकिन आप माॅं को उनकी बगैर गलती के डांट नहीं सकते। उनकी कोई गलती नहीं थी। जब वे स्कूल गई मैं पूरी तरह ठीक थी। मैं तो आज कॉलेज जाने वाली थी लेकिन माॅं ने ही मुझे सुबह कॉलेज जाने से रोक दिया था।  आप सोच कर देखिए! यदि  मैं कॉलेज चली गई रहती तो मेरा कॉलेज में क्या हाल होता?  आज माॅं की वजह से ही मैं कॉलेज नहीं गई औ.....र...

बोलते - बोलते मधु हांफने लगी। किशन देव और आरती दोनों ने हीं उसे चुप रहने का इशारा किया।


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नारायण ठाकुर के घर से निकलने के आधे घंटे बीत जाने के बाद भी जब ऋषभ घर नही आया तो ऋषभ की दादी बरामदे में बिस्तर पर बैठे - बैठे ही बुदबुदाने लगी 👇

ऋषभ की दादी :- आज तो ऐसा लग रहा है कि पूरे परिवार को ही मेरा बेटा भूखा रखेगा। ना तो खुद ही खाना खाया और ना ही मेरे पोते को ही खाना खाने के लिए भेज रहा है। भगवान जाने क्या चल रहा है उसके दिमाग में? हे भोलेनाथ! मेरे बेटे को सुबुद्धि दो ताकि वह अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में  सोचने लगे। एक ही बेटा है मेरा। मुझे पलट कर जवाब दें इसके लिए ना जाने क्या -क्या सुनाती रहते हूॅं  लेकिन आज तक उसने मुझे कभी भी पलट कर जवाब नहीं दिया। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है और शायद! उसकी चुप्पी ही वह  वजह  है जिसके कारण मुझे उसके दिल के घाव अपने मन में महसूस हो रहे है। मैंने उसके साथ बहुत बुरा किया, मुझे उसका दिल नहीं तोड़ना चाहिए था लेकिन भोलेनाथ! आप तो जानते ही हैं कि मैंने इस घर की भलाई के लिए ऐसा किया था।काश! आपने मुझे उस समय कोई ऐसा इशारा किया होता कि मैं अपने बेटे के दिल को समझ जाती जैसे आज मैं समझ रही हूॅं। भले ही मेरी और ऋषभ के दादा जी की का प्रेम विवाह नहीं हुआ था लेकिन शादी के बाद हम दोनों में प्रेम हो गया था और हम दोनों ने ही अपना सुखमय जीवन जिया। यही सोच कर कि शादी के बाद भी प्रेम होता है मैंने नारायण की शादी रेणुका से करवा दी। मुझे क्या मालूम था कि मेरा बेटा शादी के १८ साल के बाद भी अपनी पत्नी को प्रेम नहीं कर पाएगा। इतने सालों बाद  यह तो अपने बच्चों से भी प्रेम नहीं कर पाया। आज तक अपने प्रेम को दर्शाया ही नहीं उसने कभी, किसी ने देखा ही नहीं उसके प्रेम को। उसकी पत्नी को आज भी अपने पति से प्रेम की लालसा है और बच्चे भी अपने पिता के मुॅंह से दो शब्द प्यार के सुनने के लिए लालायित दिखते है। मैं कब हूॅं कब नहीं मुझे भी नहीं मालूम?  इस दुनिया को छोड़ने से पहले मेरी आखिरी इच्छा ये है कि मेरे बेटे का घर बस जाए, उसे  मैं उसके अपने बच्चों के साथ हंसता हुआ देखूं। भोलेनाथ! आजकल  मुझे ये डर लगने लगा है कि मेरी आखिरी इच्छा कहीं इच्छा ही ना रह जाए।


ऋषभ की  दादी ऑंखें बंद कर हाथ जोड़ अपने इष्टदेव भोलेनाथ का स्मरण करने लगती है  तभी  उसके कानों में
मोटरसाइकिल की आवाज सुनाई पड़ती है, झट से अपनी ऑंखें खोल वह दरवाजे की तरफ उस ओर  देखने लगती है जिस ओर से मोटरसाइकिल की आवाज सुनाई पड़ रही होती है। उनकी बूढ़ी ऑंखों को साफ-साफ तो दिखाई नहीं देता कि मोटरसाइकिल पर दो लोग कौन बैठे है?  लेकिन उन्हें उस मोटरसाइकिल की आवाज जानी -  पहचानी  सी लगती है। अपनी ऑंखों पर लगाए हुए चश्मे को उठाकर वह बार-बार उस ओर देखने की कोशिश करती है। आखिर में वह देख ही लेती है कि कौन आया है?


ऋषभ की दादी ने किसे देखा और देखने के बाद उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?  मधु के साथ आगे क्या हुआ? इन  सभी बातों को जानने के लिए जुड़े रहें इसके अगले अध्याय से।


क्रमशः


गुॅंजन कमल 💗💞💓


# उपन्यास लेखन प्रतियोगिता 


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5 Comments

Barsha🖤👑

24-Sep-2022 10:05 PM

Beautiful

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Seema Priyadarshini sahay

24-Sep-2022 06:53 PM

बहुत खूबसूरत

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Mithi . S

24-Sep-2022 06:20 AM

Very nice

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